Wednesday, July 25, 2012

नोक झोंक


"मैं तुमसे? नहीं तो!!! क्यूँ? मैं क्यूँ करूँगा तुमसे?" उसके बार बार पूछने पे की मैं उस से प्यार करता हूँ मुझे कहना ही पड़ा। और वो फिर मूँह फूला के बैठ गयी। मुझे पता था ऐसा वो तभी करती है जब उसको थोडा नोक झोंक करने का मन करता है। उसे भी पता था की मैं ये जान जानबूझ कर कर रहा हूँ। पर कभी कभार प्यार है इसके एहसास की जरुरत होती है उसको। इसके बाद के सारे स्टेप्स एक रोबोट की भाँती follow होते हैं।
step 1: थोड़ी देर तक टेढ़ी आँख से उसको अपनी तरफ मुह फुलाए हुए तकते देखता हूँ। फिर "ठीक है बाबा करता हूँ।"
step 2: पक्का?
step 3: "हाँ बाबा पक्का।"
step 4: "कितना?"
step 5: "खूब सारा!"
step 6: "बहुत सारा वाला खूब सारा?"
step 7: "हाँ. बहुत सारा वाला खूब सारा."
step 8: हंसी ऐसे वापस आती है जैसे किसी ने बाँध का पानी छोड़ दिया हो। "फिर ठीक है।"

और फिर वो वापस अपने काम मैं लग जाती है। शायद ये उसका बचपन है जो चाहता है अपने बच्चों के साथ मैं भी उसे बच्चे की तरह ही प्यार करूँ।

--- अतुल रावत

Sunday, July 22, 2012

शहर और गाँव


मैं  शहर मैं रहता हूँ  : मैं अस्पताल में पैदा हुआ.
मैं गाँव मैं रहता हूँ : मैं घर में  पैदा हुआ। 
मैं शहर में  बीमार  हुआ : पिताजी चिंता में  हैं , कितना insurance कवर होगा।
मैं गाँव में  बीमार हुआ : पिताजी ज़मीन बेच के डॉक्टर के पास लाये हैं।
मैं  शहर मैं रहता हूँ  : पिताजी दुपहिया  बेच के car लेने वाले हैं।
मैं गाँव मैं रहता हूँ : पिताजी कहते हैं वो और गाय  लेंगे।
मैं  शहर मैं रहता हूँ  : पिताजी कहते हैं वो लोन लेके नया business  शुरू करेंगे।
मैं गाँव मैं रहता हूँ : पिताजी कहते हैं लोन किसानों  को मार डालता है ।
मैं  शहर मैं रहता हूँ  : सरकार  कहती है पिताजी का business अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा है ।
मैं गाँव मैं रहता हूँ : सरकार कहती है पिताजी का शहर जाना एक समस्या  है जिसे पलायन कहते हैं।

मैं  शहर मैं रहता हूँ  : कल की सुबह उम्मीद भरी ही।
मैं गाँव मैं रहता हूँ : कल फिर एक सँघर्ष  है।

Sunday, July 8, 2012

जद्दोजेहद


कभी अपने साथ जी के देखा है? ओशो कहते हैं दिन मैं ऐक बार अपने से बात कर लिया करो, नहीं तो तुम दुनिया मैं सबसे बेहतरीन इंसान से बात करने का मौका चूक जावोगे। मैंने कई बार अकेले बैठ के देखा है। कारण कुछ नहीं था। बस ऐसे ही अपने से बात करने की कोशिश करी। कभी खुद से चाह के या कभी दुनिया की आपाधापी मैं थोडा पीछे रह गया तो सोचा थोडा सोचूं क्या किया जो नहीं करना था। थोडा अपने से बातें कर लूँ। शायद कोई जवाब मिल जाये। जैसे फिल्मों मैं दिखाते हैं, शीशे के आगे हीरो अपने आप को धुतकारता है "you are such a stupid ______!!!" वैसे ही। पर नहीं मैं नहीं सोच पता। जैसे ही सोचता हूँ तो वो ही बातें याद आती है, नहीं बातें नहीं गलतियाँ याद आती हैं और फिर आगे कुछ सोचा नहीं जाता। बस फिर बैठ जाता हूँ चुपचाप. ऐसा नहीं है की कुछ सोच नहीं पता, बस भाग जाता हूँ अपने आप से। हमेशा की तरह. छुप जाता हूँ अपने ही इंसानी खोल के अन्दर ऐक आई डोंट केयर का attitude ले के।

फ़र्ज़ करो तुम और तुम दो अलग अलग इंसान ऐक ही कमरे मैं बैठे हो... क्या बात करोगे?
दोनों ऐक दुसरे के बारे मैं सब कुछ जानते हो... क्या करोगे? नज़रें चुराओगे या मिलाओगे? शायद चुप ही रहोगे... मेरी तरह...


--- अतुल रावत