Wednesday, September 26, 2012

मेरे ख्वाब तुम्हारे पास सहारा पाने आएंगे...

मेरे ख्वाब तुम्हारे पास सहारा पाने आएंगे। 
पर उनको तिरस्कार भरी नज़रों से वैसे ही दूर कर देना जैसे किसी भिखारी को करते हैं।
हो सकता है वो उम्मीद भर के नज़रों में तुम्हारी तरफ़ हाथ फैलाये। तुम अपनी नज़रें फेर लेना।
उन नज़रों से तुम्हे कोई सरोकार नहीं। वो आँखें उम्मीद की रौशनी देख पाती हैं। पर उन्हें उम्मीद की रौशनी मत दिखाना। कहीं वो फिर प्यार का कर बैठें। उन्हें बेसहारा ही रहने देना।

अगर मेरे ख्वाब तुम्हारे पास सहारा पाने आएं।

आभार :
जबसे दुष्यंत कुमार की कविता "मेरे गीत तुम्हारे पास सहारा पाने आएंगे" पड़ी है तबसे ये लाइन मेरे ज़ेहन में गूँज रही है किसी daemon thread की तरह पर गीत की जगह ख्वाब आ रहा है बार बार कविता लिखने वाला कविता किस भाव से लिखता है और हमारा मन उसको अपने हिसाब से परिवर्तित कर देता है

और सही भी है. मेरे ख्वाब शायद तुम्हारे पास सहारा पाने आयें।

--- अतुल रावत